ज़िन्दगी तोः है उधार की
यह ज़िन्दगी तोः है उधार की
ना जाने किसकी है और किसकी हो जाये
कभी ललचाये और कभी यूँ ही मुफ्त में आपकी हो जाए
रोज़ नयी और रोज़ वही पुरानी
यह ज़िन्दगी तोः है उधार की
कभी यूँ ही निकल जाये और कभी काटी न जाए
हर रोज़ साथ रुलाए और गुदगुदी करती जाये
कभी प्यार तो कभी तक़रार के नए रंग खिलाये
यह ज़िन्दगी तोः है उधार की
कभी होसंला बढ़ाये और कभी यूँ ही मायूस किये जाये
अपना रास्ता खुद ब खुद ढूंढ़ती यह ज़िन्दगी किसी दिशा में खुद ही बढ़ती जाये
न तुम्हारी पकड़ में आएगी , इसे बहने दो तोः तुम्हारी बन कर रह जायेगी
न जाने कब शुरू और कब ख़तम पल पल यह ज़िन्दगी जीना सिखलाएगी
कभी बच्चों में नज़र आये और कभी बड़े को ही बच्चा बना जाए
यह ज़िन्दगी तो है उधार की
न बांधों इसे समय की पोटली में
न बांधों इसे आरज़ू में , अरमानों में
मत खोजो इसे नगर नगर डगर डगर
मत करो इस से ज़िद
यह ज़िन्दगी हमसफ़र भी और दोस्त भी
छाओं भी और धूप भी
जी सको तोह जी लो आज अभी
यह ज़िन्दगी तोह है उधार की
सुमीत सिंघल
०७०४२०२०